Kharbuja ki kheti – खरबूजे की खेती एक ग्रीष्म कालीन फसल हे खरबूजे की खेती को आमतौर पर अधिक गरम तापमान और शुष्क जलवायु की आवशयकता होती हे तेज धुप खरबूजे के बीज के अंकुरण ,बेल के फैलाव ,फल के पकने में सहायता करती हे ठण्डा तापमान फसल के अंदर फफूंद जनितरोग और कीटो के प्रकोप को बढ़ाता हे
खरबूजे की 70 % खेती आज भी नदियों और तालाबों के किनारो पर की जाती हे ईसके कच्चे फलो को सब्जी में भी उपयोग किया जाता हे खरबूजे की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश , हरियाणा पंजाब ,बिहार , महाराष्ट में की जाती हे – Kharbuja in hindi
यहाँ आपको खरबूजे की खेती से सम्बंधित सभी जानकारी मिलेगी जों आपके लिये आवश्यक हें
खरबूजे की खेती A to Z – Kharbuja ki kheti
आमतोर पर बहुत से किसान खरबूजे की खेती को परंपरागत रूप से करते हे जिससे किसानो को हल्की कवालिटी की उपज मिलती हे जिसके कारण किसानो को अच्छा मुनाफा नहीं मिल पाता हे आज किसानो को जरुरत हे वैज्ञानिक विधियों को अपनाके अधिक उत्पादन और अच्छी फसल प्राप्त करने की
जलवायु
गर्म और शुष्क जलवायु खरबूजे की खेती के लिए अच्छी होती हे ईसकी खेती के लिए मिटटी का PH मान 7 के लगभग अच्छा रहता हे बलुई और दोमट मिटटी और अच्छी जल निकास वाली मिटटी खरबूजे की खेती के लिए सर्वोत्तम पाई जाती हे
अधिक नमी वाले मौसम में फल देरी से पकते हे और शुष्क मौसम फलो को जल्दी पका देता हे और इससे फलो में मिठास भी बढ़ती हे पाले से खरबूजे की फसल को बहुत अधिक नुकसान होता हे
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खरबूजे की उन्नत किस्म – Kharbuja ki kheti
1 हरा मधु खरबूजा – hara madhu
ईस किस्म के खरबूजे में हरी धारिया होती हे हरा मधु खरबूजे का भार औसत आधा किलो से एक किलो के लगभग होता हे। और खरबूजे में मिठास की मात्रा 13 से 14 प्रतिशत होती हे इस खरबूजे का गुदा हल्का हरा और पीला होता हे इस किस्म की उपज 60 किवंटल प्रति एकड़ के लगभग होती हे
2 दुर्गापुर मधु खरबूजा – durgapur madhu
यह खरबूजे की एक अच्छी किस्म हे ईस किस्म के खरबूजे की प्रति एकड़ 65 से 70 किवंटल होती हे और मिठास कि मात्रा 14 प्रतिशत होती हे इसका वजन 500 ग्राम के लगभग होता हे इसके गुदे में मिठास बहुत अधिक होती हे और गुदा हरे रंग का होता हे
3 अर्का राजहंस खरबूजा – arka rajhans
ईस किस्म में मिठास भरपूर होती हे मिठास की मात्रा 14 प्रतिशत होती हे इस किस्म में फल का आकर बड़ा और छिलका जालीदार होता हे इसमें प्रतिएकड़ 50 से 55 किवंटल की पैदावार होती हे
4 अर्का जीत खरबूजा – arka jit
यह खरबूजे की अगेती खेती के लिए अच्छी किस्म हे इस किस्म के फल बहुत अच्छे और गुलाबी रंग के होते हे ईस किस्म के फल छोटे होते हे जिनका बजन 400 ग्राम के लगभग होते हे इसमे फल की मिठास और विटामिन C की मात्रा बहुत अधिक होती हे इसमे फल का गुद्दा सफेद और खुसबू मनमोहक होती हे
5 पंजाब रसीला खरबूजा – panjab rasila
ईस किस्म के खरबूजे में गुद्दा रसीला और सुगंद मनमोहक होती हे फल मध्यम आकर का 600 ग्राम के लगभग होता हे ईस किसम में प्रति एकड़ 65 कुंतल के लगभग उत्पादन होता हे और चीनी की मात्रा इस किस्म में 10 पर्तिशत होती हे
6 पूसा रसराज खरबूजा – pusa rasraj
यह खरबूजे की काफी लोकपिर्य प्रजाति हे यह उत्तर भारत के किसानो के अंदर काफी लोकपिर्य हे यह हाइब्रिड प्रजाति हे जिस वजह से इस प्रजाति में उत्पादन बहुत अधिक मिलता हे इसमें 100 किवंटल के लगभग उत्पादन प्रति एकड़ होती हे
7 अर्का मानिक – arka manik
ईस किस्म के फल गोल और अंडाकार होते हे ईस किस्म का भंडारण और परिवहन की श्रमता बहुत अच्छी हे
8 कासी मधु – kasi madhu
ईस किस्म के फल हलके पिले और धारीदार होते हे फल का वजन 1 किलो के लगभग होते हे इस किस्म की औसत उपज 200 किवंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक हो जाती हे इस किस्म में फफूंद जनित रोगो से लड़ने की रोग प्रतिरोधक् श्रमता अधिक होती है
अन्य किस्मे – पंजाब अनमोल
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खेत की तैयारी – Kharbuja ki kheti
खरबूजे की खेती के लिये तैयार करने के लिए जमीन की पहले गहरी जुताई कर ले जिससे मिटटी भुरभुरी हो जाये खरबूजे की खेती तरबूज – लोकी – कददू की तरह ही की जाती हे
खरबूजे के बीज की रुपाई के पहले खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद और जैविक खाद का छिड़काव करे जिससे खरबूजे की खेती की पैदावार में बढ़ोतरी होगी
भूमि का चुनाव और भूमि की तैयारी
खरबूजे की खेती सामान्य लोकि की तरह ही की जाती हे बुहाई के पहले 3 से 4 ट्रॉली सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में बिखेर कर खेत की बुआई करे खरबूजे की खेती करने के लिए खेत की दिसम्बर – जनवरी के लगभग गहरी जुताई करके छोड़ देना चाहिये
खरबूजे की खेती सभी तरह की मिटटी में की जा सकती है लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए दोमट और रेतीली मिटटी अच्छी होती है खरबूजे की खेती सबसे अधिक नदियों के किनारे कछारी भूमि में की जाती है
इसकी खेती के लिए मिटटी का PH 6 से 7 सबसे अच्छा होता है खेत को तैयार करने के लिए हल से गहरी जुताई करने के बाद 3 से 4 बार कल्टीवेटर से या हेरो चलाकर पाटा लगा ले
खरबूजे की फसल में दीमक की रोकथाम के लिए मेथाइल 2 प्रतिशत की 20 मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी के हिसाब से मिला कर अंतिम बुहाई के पहले खेत में स्प्रे कर दे
बुहाई का समय
खरबूजे की बुहाई पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रेल से मई तक की जाती है और फरवरी में मैदानी क्षेत्रों में खरबूजे की खेती की जाती है नदियों के मुहाने पैर इसकी खेती जनवरी के लगभग की जाती हे मध्य और दक्षिण भारत में खरबूजे की बुहाई अक्टुम्बर- नवम्बर के लगभग की जाती हे
बीज की मात्रा और आवश्य्कता
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए लगभग 3 किलो बीज की आवश्य्कता होती हे हाइब्रिड बीज में 1 किलो बीज की आवश्य्कता होती है
सिचाईका समय
खरबूजे की खेती में पानी का आवश्य्कता होती है सूखे मौसम में आवश्य्कता के अनुसार पानी पिलाना आवश्य्क होता है नदियों के पास में खेती करने पर 2 से 3 सिचाई की ही आवश्य्कता होती हे और गर्मी में उगाई जाने वाली फसल में 5 से 8 दिन में ही सिचाई की आवश्य्कता होती है
फल के पकने के समय इसकी सिचाई नहीं करनी चाहिये अन्यथा फल में मिठास कम होती हे खरबूजे की फसल में फूल आने और फल विकास के समय और तना बढ़ने के समय पानी पिलाना बहुत जरुरी हे
बुहाई की विधि
मैदानी क्षेत्रों में 3 फिट की नालिया बना कर बीज की बुहाई मेरो के पास में करे और नालियों में 5 से 6 फिट की दुरी रखे जिससे बेल का फैलाव अच्छा होता है नदियों के किनारो पर खरबूजे की बुहाई खड़ा में की जाती हे
60 – 60 से.मी गहरा गड्डा बना कर इसमें गोबर का खाद मिटटी और बालू रेत को बराबर मात्रा में मिला कर भर दे फिर गड्डे में बीज की बुहाई करते है सभी गड्डे में 3 – 3 बीज की बुहाई करे
खाद और उर्वरक की आवश्यकता
खरबूजे की खेती में अच्छा उत्पादन लेने के लिए हमें खेत में 200 किवंटल गोबर की खाद डालना चाहिये और 40 किलो के लगभग नाइट्रोजन 50 – 50 किलोग्राम के लगभग पोटास और फास्फोरस भी प्रति हेक्टेयर उपयोग करे
खरपतवार नियंत्रण कैसे करे
बरसात के समय खरपतवार फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाती हे जिससे उत्पादन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता हे फसल को नुकसान से बचाने के लिये बीज की बुहाई से लेकर 30 दिन तक फसल में खरपतवार का विशेष ध्यान रखे और फसल की निराय – गुड़ाई करते रहे जिससे फसल में कोई रोग उत्पन न हो
बुहाई के समय 2 से 3 बार गहरी जुताई करवानी चाहिये और बीज की बुहाई के बाद 2 से 3 बार फसल की निराय – गुड़ाई करनी चाहिए निराय – गुड़ाई के समय ही बेल की जड़ो पर मिटटी चढ़ा दे
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किट और रोगो का नियंत्रण – Kharbuja ki kheti in hindi
खरबूजे की फसल में शुरुआती समय पर रोगो का अधिक ध्यान रखना चाहिए कुछ मुख्य किट और रोगो का नियंत्रण करके खरबूजे की फसल में अच्छा लाभ कमा सकते है
1 – फल मक्खी किट
यह मक्खी फल को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाती है यह किट फल के छिलके के अंदर घुस कर अंडे देना पसंद करता है अंडो से बाद में सुंडी निकलती है जो फल को नुकसान पहुँचाती है और फल को अंदर से सड़ा देता हे यह किट फल के जिस भी भाग पर अंडे देता हे वो भाग आकार में टेड़ा हो जाता हे
रोखथाम
फसल को ईस किट से बचाने के लिये सबसे कारगर उपाय हे की किसान भाई खेत की बुहाई के समय ही निम् का काढ़ा गौ-मूत्र आदि को माइको झाइम के साथ मिक्स करके खेत में स्प्रे करे और सरसो की खली व नीम की खली को खेत में बिखेर दे जिससे किट की रोकथाम होगी
2 – लालड़ी या लाल किट [ रेड पम्पकिन बिटिल ]
ईस किट की सुंडी जमीन के अंदर अधिक पायी जाती हे यह किट पौधे को दो पत्ती और बेल दोनों ही अवस्था में प्रभावित करता है यह किट पौधे की जड़ में बीज में एवं दो से तीन पत्ती की अवस्था में बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है जब ईस किट का अधिक प्रभाव होता है तब पौधा पत्ती रहित हो जाता है
रोकथाम
ईस किट की रोकथाम के लिए फसल में निम् का काढ़ा और गौ-मूत्र को माइक्रोजाइम के साथ मिक्स करके फसल पर स्प्रे करे या सुबह फसल पर ओस पड़ने पर राख का छिड़काव करने से भी इस किट का प्रभाव कम होता हे
किट के अधिक प्रभाव होने की दशा में डाइक्लोरोवास 76 EC को 1.25 मिली मात्रा को प्रति लीटर की दर से या ट्रायक्लोफेरान 50 EC को 1मिलीपर लीटर की दर से स्प्रे करे
मुख्य रोग
1 – चूर्णी फफूंद – रोग
ईस रोग में बेल की पत्तियों और तनो पर सफ़ेद दाद के आकार का जाल सा बन जाता है यह रोग एरिसाइफ़ी सिकोरेसिएरम नाम की फफूंद के कारण होता है इस रोग के कारण पौधे की सारी पत्तिया झड़ जाती हे इसके कारण पौधे की बढ़वार रुक जाती हे
रोकथाम
इस रोग का प्रभाव जिस भी पौधे पर दिखाई दे उसे उखाड़ के जला देना चाहिये बेल पर फैलाव के समय ही गौ-मूत्र और निम् के काढ़ा का उपयोग करने से रोग लगने की सम्भावना कम होती है और समय – समय पर बेल पे इनका स्प्रे करते रहना चाहिए
2 – मर्दरोमिल फफूंद – रोग
ये रोग बेल की पत्तियों की निचली सतह पर धब्बो के रूप में होता है जो ऊपर से पिले और भूरे रंग के दिखाई देते हे यह रोग बरसात के समय अधिक होता हे उत्तरी भारत में ये रोग अधिक होता है
रोकथाम
ईस रोग की रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करके बुहाई करनी चाहिये इसकी रोकथाम के लिये मेंकोजेब 2.5 ग्राम पर लीटर के हिसाब से 10 दिन के अंतराल में 3 से 4 बार करना चाहिए
3 – खीरा मोजेक वायरस – रोग
यह विषाणु जनित रोग हे जो चेपा द्वारा फैलता हे इसमें पत्तिया मुड़ी हुई सिकुड़ी हुई होती हे और फल का आकर छोटा बनता हे और उत्पादन कम होता है
रोकथाम
अच्छी और रोग रोधी किस्म का उपयोग करना चाहिये रोगी पोधो को खेत से निकल दे इस किट की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट [ 0.05 ] की मात्रा को पर लीटर की दर से स्प्रे 10 दिन के अंतराल में करते रहे फल आने के समय दवा का स्प्रे बंद कर देना चाहिए
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खरबूजे की उपज और तुड़ाई
खरबूजे की तुड़ाई बहुत सी बातो के आधार पर की जाती हे जैसे – उसकी किस्म, बुहाई का समय , तापमान , मंडी की दुरी , फसल की किस्म आधी के आधार पर ही फल की तुड़ाई की जाती है
फल पका हे या नहीं इसके लक्षण
- जब फल पकने लगता हे तब फल निचे की तरफ से पहले पकता हे
- फल पकने पर बेल और तने का रंग हरे से सफ़ेद होने लगता है
- फल पकने पर फल का रंग बदलने लगता हे और फल मुलायम होने लगता हे
- जब फल पाक जाता हे तो फल में से मीठी सुगंद आने लगती हे तब पता लग जाता हे की फल पक चूका हे
- फल की तुड़ाई हमेसा सुबह के समय ही करना चाहिए
- तुड़ाई करने के बाद फल को हमेसा ठन्डे स्थान पर ही रखना चाहिये
अगर आप ऊपर दी गई सभी सलाह को अपनाते है तो आप को अच्छी उपज प्राप्त होगी और आप मोटा मुनाफा कमा सकते हे खरबूजे की अच्छी उपज प्राप्त होती हे तो आप 150 से 200 किवंटल प्रति एकड़ के हिसाब से उत्पादन प्राप्त कर सकते है Kharbuja ki kheti एक एकड़ में किसान सामान्य तोर पर एक लाख के लगभग मुनाफा हो जाता हे अगर बाजार में भाव अच्छा रहता है तो मुनाफा भी अधिक मिलता ह
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